बस्ती,26 सौ वर्ष पुराना है सिद्धपीठ काली मंदिर का इतिहास, 11 प्रमुख शक्तिपीठों में शामिल है बस्ती की मां काली का मंदिर- लोगो के आस्था का केन्द्र है माँ काली का मंदिर
बस्ती,बस्ती,पुरानी बस्ती स्थित रेलवे स्टेशन के पास सिद्धपीठ महाकाली मंदिर पूर्वांचल के 11 प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर करीब 26 सौ वर्ष पुराना है। धार्मिक मान्यता है कि देवासुर संग्राम के दौरान मां काली की कनिष्ठा अंगुली यहीं गिरी थी, जिससे यह शक्तिपीठ अस्तित्व में आया।
कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां रुककर मुख्य पिंडी की स्थापना की
थी। लोककथाओं के अनुसार राजा विक्रमादित्य और महाराजा शुद्धोधन ने भी यहां आकर पूजा-अर्चना की थी।
1950 में मिला वर्तमान स्वरूप
महाकाली मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1950 में तैयार हुआ। वाल्टरगंज क्षेत्र के हरदिया गांव निवासी वंशलोचन
शुक्ला ने बस्ती रियासत के सहयोग से इसका निर्माण कराया। मंदिर की देखरेख आज भी शुक्ला परिवार करताहै। सम्वत 2019 (साठ के दशक) में तत्कालीन पुजारी सहदेव शुक्ल ने जनसहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया ।
महाभारत काल और ऐतिहासिक उल्लेख मंदिर का महत्व महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है। मान्यता है कि अयोध्या की पुनर्स्थापना के लिए महाराज विक्रमादित्य ने यहां एक माह तक देवी की आराधना की थी। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध के पूर्वज महाराजा शुद्धोधन ने भी राज्य की मंगलकामना के लिए इस स्थल पर दो दिवसीय यज्ञ कराया था।
काले पत्थर की काली प्रतिमा पूरे पूर्वांचल में अद्वितीय है। अंग्रेज लेखक डेविड ग्राहम ने 1908 में अपनी पुस्तक पिलग्रिम्स ऑफ स्टेट यूपी में इस शक्तिपीठ का उल्लेख किया और लिखा कि यहां लोगों की गहरी आस्था है।
रेलवे स्टेशन से मात्र 200 मीटर की दूरी मंदिर रेलवे स्टेशन से लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित है। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ट्रेन सबसे सुविधाजनक साधन है। बस स्टेशन से टेम्पो द्वारा रेलवे स्टेशन चौराहे तक पहुंचकर पैदल मंदिर जाया जा सकता है।
मंदिर के संरक्षक एवं पुजारी संजय कुमार शुक्ल के अनुसार नवरात्र मे ही नहीं, सोमवार व शुक्रवार को स्थानीय
तथा आस-पास के जिलो को श्रद्धालु यह सत्य नारायन की कथा सुनते हैं। इसके साथ ही मुंडन व उपनयन संस्कार
के काया भी यहां सम्पन्न होते हैं।
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