बस्ती,भारत के सम्बन्ध में मजदूर आंदोलन की नींव या मजदूरों के संवैधानिक अधिकार
बस्ती,डाॅ. अंबेडकर ने 20 जुलाई 1942 को वाइसराय की कौंसिल में श्रम सदस्य के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और उन्हें श्रम विभाग का कार्य सौंपा गया। आपके नेतृत्व में भारत के मजदूरों की स्थिति में अमूलचूक परिवर्तन हुए।
कारखाना (संसोधन) विधेयक, कारखाना अधिनियम 1934 में चार धारा 9, 19, 23, 45 और 54...
धारा 9 के अन्तर्गत जब कोई व्यक्ति कारखाना लगाये तो इससे पहले उसे विशिष्ट विवरण देते हुए कारखाना निरीक्षक को सूचित करना चाहिए ऐसा संसोधन किया गया इसके पहले कारखाना मालिक अपने मन मुताबिक काम करते आ रहे थे।
धारा 19 का संबंध कारखाने में पानी और नहाने-धोने का स्थान मुहैया कराने से है मौजूदा धारा के अनुसार नहाने-धोने के स्थान का प्रावधान उन कारखानो तक सीमित है जहां श्रमिकों को हानिकारक सामग्री के संपर्क में आना पड़ता है इस धारा के अन्तर्गत सभी प्रकार के कारखाना मालिकों को नहाने-धोने के लिए अनिवार्य सुविधा नही जुटानी होती। यह सुझाव दिया गया कि यह सीमा हटा दी जाय क्योंकि सफाई के स्थान की सभी मजदूरों को होती है केवल उन्ही के लिए नही जो हानिकारक सामग्री के संपर्क में आते है। इसीलिए इस संशोधन के द्वारा सभी कारखानों के लिए नहाने-धोने का प्रबंध अनिवार्य बनाया गया।
धारा 23 के संसोधन के अनुसार सभी प्रकार के कारखानों में सरकार को यह अधिकार होगा कि वह निर्धारित कर सके कि किसी कारखाने में कितने अग्निशामकों यंत्र की आवश्यकता है वह इसकी पूर्ति अनिवार्य रूप से की जाय।
अब मैं धारा 45 और 54 पर आता हूं इन धाराओं का संबंध दो बातो से है कारखाने में बाल और महिला श्रमिक को काम के घंटे मे बदलाव नही हुआ लेकिन समयसीमा में बदलाव किया गया।
जिस तरह से संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में भारतीय मजदूरों का जीर्णोद्धार हुआ। वह आज के स्वरूप में मुकम्मल आवाज बननी चाहिए। डाॅ अंबेडकर न होते तो क्या होता मजदूर वर्ग का यह सोच कर ही रूह कांप जाती है।
#अंबेडकरजयंती132वीं
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